Monday, December 27, 2010

लक्ष्य

ओ ! वीर
सिकोड़ कर विचारों को
क्या कभी लक्ष्य आ पाएगा ?
स्वीकार किया कि
पथ में शूल गढ़े हैं
मौसम ज्वालामय है
और.... साथ में....
कोई नहीं है –
पर.... खाकर ठोकर
पत्थर से लड़ना
तो..... बुद्धिमता नहीं
उठ / बढ़
पत्थर क्या, पहाड़ क्या ?
तुझे अब नक्षत्र भी रोक
ना पाएँगे……
निश्चय सुदृढ़ जो कर लिया
बूँद भर भी विश्वास
और धैर्य.....
उस साहस का जन्मदाता होगा
जो लक्ष्य को....
तुझ तक ले आएगा..... ।

Thursday, December 2, 2010

 मेरी आत्मकथा

मेरा जीवन बीता बड़ी कठिनाई में
इस नश्वर जीवन की चढ़ाई में
    
       बचपन बीत गया
इस ना समझ में आने वाली पढ़ाई में
और मैं डूब गया दुनिया की खटाई में
    
        जवानी बीती
पुलिस के साथ होने वाली बार-बार की लड़ाई में
और बीवी-बच्चों का सवाल ही ना था इस महंगाई में

         दिन बीतते
हरे मखमल में सपनों की गहराई में
और कभी पैसे वालों से पकड़म पकड़ाई में

         रातें जातीं
हरे नोटों से भरी तिजोरी की कटाई में
और कभी दूसरे भाईयों से पैसे की बंटाई में

        बुढ़ापा बीता
जेल की चक्की से गेहूँ की पिसाई में
और मैं लुट गया जिंदगी की लुटाई में

           अब
यहाँ बैठा हूँ नरक की गरम तेल की कढ़ाई में
और समय बीतता है यमदूतों से पिटाई में

मेरा जीवन बीता बड़ी कठिनाई में
इस नश्वर जीवन की चढ़ाई में

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8th me tha jab yah kavita likhi gyi thi.