Monday, March 14, 2011


गुरुदर्शन


स्वर्णिम समय होए, तब होता है गुरुदर्शन । 
सत् में प्रीति बढ़े, घटे मिथ्या आकर्षण ॥


गुरुदर्शन से विश्रांति मिलती, अन्तःकरण की प्रसन्नता खिलती
हृदय में उमड़ता है सुख, पुलकित हो उठता है मुख
रोमांचित रोम-रोम हो जाता, भाव नहीं मन में है समाता
दूर से जब झलक है आती, नम आँखें छलक हैं जाती
कोमल सुंदर भव्य चरण, सब चाहते इनकी शरण
गुरुजी की मुस्कान मनोहर, दुःख संताप को लेती हर
मधुर हितकर सरस वाणी, विवेक-संयम-अभयदानी
सद्गुरु की करुणामयी दृष्टि, सात्विकता की करती वृष्टि
हँसना, उठना, बैठना, हिलना, दिव्य गुरु का बोलना चलना
देख देख कर स्वरूप आलौकिक, हो जाए मन प्रसन्न और अधिक
प्रेमसिंधु हैं ज्ञाननिष्ठ हैं, सद्गुरु मेरे परमइष्ट हैं


गुरुदर्शन मिलते रहें विनती ये बार बार ।
सेवा की प्रेरणा यही, साधन का आधार ॥

Thursday, March 3, 2011

समर्पिता

मिटाया हृदय, छिपाया मन और दिखाया दिल मेरे लिए
अतृप्त मैं कब से प्यासा, तुम बनी साहिल मेरे लिए

कई बार दुःख, बार-बार दिक्कत, लगातार परेशान मेरे लिए
पूर्ति मेरी, और गँवा दिया तुमने स्वाभिमान मेरे लिए

किया त्याग, जिया नरक, दिया अपनापन मेरे लिए
धूल था मैं, तुम भी बन गई कण मेरे लिए

सपने तोड़े, अरमान सिकोड़े, फोड़े ख्वाइश घड़े मेरे लिए
जीवन ने पुकार की, तुम मौत से लड़े मेरे लिए

आन बेकीमती, मान बेमतलब कि शान भी दूर मेरे लिए
कीचड़ को सुहावना सावन समझा, बनी मयूर मेरे लिए

मूँद दिए दुःख, बूँद किए आँसू, ढूँढ दिए हल मेरे लिए
मेरी समर्पिता, तुम गई जल में जल मेरे लिए

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12th class metha jab main tab likhi gyi thi yah kavita.