गुरुदर्शन
स्वर्णिम समय होए, तब होता है गुरुदर्शन ।
सत् में प्रीति बढ़े, घटे मिथ्या आकर्षण ॥
गुरुदर्शन से विश्रांति मिलती, अन्तःकरण की प्रसन्नता खिलती
हृदय में उमड़ता है सुख, पुलकित हो उठता है मुख
रोमांचित रोम-रोम हो जाता, भाव नहीं मन में है समाता
दूर से जब झलक है आती, नम आँखें छलक हैं जाती
कोमल सुंदर भव्य चरण, सब चाहते इनकी शरण
गुरुजी की मुस्कान मनोहर, दुःख संताप को लेती हर
मधुर हितकर सरस वाणी, विवेक-संयम-अभयदानी
सद्गुरु की करुणामयी दृष्टि, सात्विकता की करती वृष्टि
हँसना, उठना, बैठना, हिलना, दिव्य गुरु का बोलना चलना
देख देख कर स्वरूप आलौकिक, हो जाए मन प्रसन्न और अधिक
प्रेमसिंधु हैं ज्ञाननिष्ठ हैं, सद्गुरु मेरे परमइष्ट हैं
गुरुदर्शन मिलते रहें विनती ये बार बार ।
सेवा की प्रेरणा यही, साधन का आधार ॥